Saturday, 21 January 2012

System In India

Jt. commissioner (traffic Police,Delhi)-Satyendra Garg

सन् 1988 की है, जब मैं दिल्ली पुलिस में अंडर ट्रेनिंग एसीपी नियुक्त हुआ। मेरे घर मेरी मौसी का लड़का आया। उसका ट्रांसपोर्ट का काम है। बातों-बातों में उसने मुझसे मेरा विजिटिंग कार्ड मांगा। मैने पूछा कि तुम्हें विजिटिंग कार्ड की क्या जरूरत आ पड़ी। तुम्हारे पास तो सभी फोन नंबर हैं। तब उसने बताया कि ट्रांसपोर्ट का काम होने के चलते कई बार रास्ते में पुलिस वाले गाड़ी रोक कर परेशान करते हैं। ऐसे में आपका विजिटिंग कार्ड होगा तो उसे दिखाकर थोड़ा रौब जमा लेंगे। तब मुझे एहसास हुआ कि विजिटिंग कार्ड का किस तरह से गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। तब से आज तक मैने विजिटिंग कार्ड नहीं छपवाए। सर गाइडेंस लेने आया हूं ऐसे ही 1990 में विवेक विहार में एसीपी लगा। ड्यूटी के दूसरे दिन अनाज मंडी में तैनात एक सब-इंस्पेक्टर मिलने आया। मैंने उसे आने की वजह पूछी। उसने कहा सर गाइडेंस लेने आया हूं। मैं समझ नहीं पाया। उससे पूछा कि मैं तो नया हूं। आईपीसी या केस की तफ्तीश मामले में कुछ पूछना है तो पूछो। मैंने उससे पूछा कि तुम्हारी सर्विस कितनी हो गई तो वह बोला 12 साल की हो चुकी है सर। मैंने कहा जब 12 साल की सर्विस हो गई तो किस तरह की गाइडेंस चाहिए। गाइडेंस यही है कि काम अच्छा करो, शिकायत नहीं आनी चाहिए। वह वह फिर बोला सर कुछ तो एडवाइस दीजिए। उसकी बातों से झल्लाकर मैंने उसे जाने को कहा और फाइलें देखने लगा, लेकिन चलते-चलते भी वह कह गया सब कुछ भी कैसी भी गाइडेंस हो तो दे दीजिए। मैने कहा कि ईमानदारी से काम करो, जाओ बस यही गाइडेंस है। एक-दो दिन बाद जिले के अन्य एसीपी के साथ मिलना हुआ तो मुझे गाइडेंस की याद आ गई और मैं उनसे पूछ बैठा आखिर यह क्या बला है? साथी एसीपी ने बताया कि वह सब-इंस्पेक्टर गाइडेंस के नाम पर आपके घर पर हर माह का दूध, सब्जी, राशन पहुंचाने से लेकर बिजली का बिल, टेलीफोन का बिल या फिर किसी भी तरह के शौक को पूरा करने की फरमाइश जानना चाह रहा था। उस घटना के बाद से अब तक कोई मुझसे गाइडेंस लेने नहीं आया। और जब सिफारिशी लोगों ने की तौबा बात 1997 की है। उस समय मैं नार्थ वेस्ट जिले का डीसीपी था। कुछ दिनों बाद एक डीआइजी रैंक के अधिकारी के स्टाफ आफिसर का फोन आया। एक सब इंस्पेक्टर का नाम लेते हुए उसने कहा कि साहब ने कहा है उसे आजादपुर चौकी का प्रभारी बना दो। मैने सोचा कि ऐसे ही कोई हवाबाजी कर रहा होगा, लेकिन दो-दिन बाद खुद डीआइजी साहब का ही फोन आ गया कि एसओ ने जो काम बताया था, वह हो गया क्या। मैने उन्हें कहा कि आप चिंता न करें। उसके बाद मैने उस सब-इंस्पेक्टर का रिकार्ड खंगाला तो विजिलेंस में उसके खिलाफ एक केस पेंडिंग पड़ा था। तत्काल फाइल मंगाकर उसकी रिपोर्ट के आधार पर सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया और आदेश की कॉपी सभी आला अधिकारियों समेत सिफारिश करने वाले डीआइजी साहब को भी भेज दी। बुरी तरह भन्नाए डीआइजी साहब ने वह फाइल अपने यहां मंगाई, लेकिन पढ़कर उन्हें समझ में आ गया कि क्या सही है। इस घटना का ऐसा असर हुआ कि जब तक मैं जिले में रहा किसी ने तैनाती के लिए सिफारिश नहीं लगवाई।

No comments:

Post a Comment